योशुआ का ग्रथ 20

Joshua 20

2) “इस्राएली लोगों से कहो कि वे अपने लिये उन शरण नगरों का निर्धारण करें जिनके विषय में मैंने मूसा द्वारा तुम लोगों से कहा था।

3) वहाँ से व्यक्ति को रक्त के प्रतिशोधी से शरण मिलेगी, जिसने अनजाने संयोग से किसी की हत्या की है।

4) वह उन नगरों में से किसी में भी भाग कर नगर के द्वार के पास उस नगर के नेताओं के सामने अपना मामला प्रस्तुत करेगा। वे उसे नगर के भीतर ले जा कर वहाँ शरण दें। तब वह उनके साथ रहेगा।

5) यदि रक्त का प्रतिशोधी उसका पीछा करे, तो वे उस व्यक्ति को उसके हवाले नहीं करें, जिस पर हत्या का अभियोग लगाया है, क्योंकि उसने बैर से नहीं, बल्कि संयोग से अपने पड़ोसी का वध किया।

6) वह उस नगर में तब तक रह सकता है, जब तक समुदाय के न्यायालय में उस पर मुकदमा न चलाया गया हो और तत्कालीन प्रधानयाजक की मृत्यु न हुई हो। इसके बाद वह अपने नगर और अपने घर लौट सकेगा, जहाँ से वह भाग कर आया था।

7) इसलिए उन्होंने नफ़्ताली के गलीलिया के पहाड़ी प्रदेश में केदेश को, एफ्रईम के पहाड़ी प्रदेश में किर्यत-अरबा, अर्थात हेब्रोन को निश्चित किया।

8) यर्दन के उस पर येरीख़ो के पूर्व रूबेन वंश के पठार पर उजाड़खण्ड के बेसेर को, गाद वंश में गिलआद के रामोत को और मनस्से वंश के बाशान में गोलान को निश्चित किया।

ईश्वर के निर्देश पर योशुआ ने छह शरण नगरों की स्थापना की। ये नगर उन लोगों के लिए थे जो अनजाने में हत्या कर देते थे और न्याय से बचने के लिए शरण चाहते थे।

  1. शरण नगरों का उद्देश्य
    • ये नगर न्याय और दया का संतुलन बनाए रखने के लिए थे।
    • यह ईश्वर की न्यायप्रियता और करुणा का प्रतीक है।
  2. छह शरण नगर
    • ये नगर विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित किए गए ताकि हर किसी को आसानी से शरण मिल सके।
    • यह दिखाता है कि ईश्वर सभी के लिए न्याय सुनिश्चित करता है।
  3. आध्यात्मिक महत्व
    • शरण नगर हमें सिखाते हैं कि ईश्वर हमेशा पापियों को पश्चाताप का अवसर देता है।
    • यह हमें दूसरों के प्रति दया और सहानुभूति दिखाने की प्रेरणा देता है।
निर्गमन ग्रन्थ को अच्छे से समझने इसके परचिय पर बनाये गए वीडियो को देखिये।